ब्रिटिश विस्तार एवं सुदृढ़ीकरण

ब्रिटिश भारत में केवल व्यापार करने के लिए आए थे और क्षेत्र पर कब्जा करने की उनकी कोई नहीं थी , यह सिद्ध नहीं किया जा सकता हैं 18 वी शताब्दी में पश्चमी यूरोपीय देशों ने अपने यापारिक एवं राजनितिक हितों को सुनिश्चित करने के लिए वैश्विक क्षेत्रीय विस्तार के चरण का आरम्भ किया था और उपनिवेशों की स्थापना की । अंग्रेजों की भारत विजय को इस वैश्विक राजनितिक घटनाक्रम के एक हिस्से के तोर पर देखा जा सकता हैं ।

ब्रिटिशकाल की शुरुआत

18 वी शताब्दी के मध्य में , भारत वास्तव में चौराहे पर खड़ा था । इस समय विभिन ऐतिहासिक शक्तियां गतिशील थीं , जिसके परिणाम स्वरुप देश एक नै दिशा की और उनमुह हुआ । कुछ इतिहासकार इसे 1740 का वर्ष मानते हैं , जब भारत में सर्वोच्तम के लिए आंग्ल – फ़्रांसिसी संघर्ष की शुरुआत हुई । कुछ इसे 1757 का वर्ष मानते हैं , जब अंग्रेजो ने बंगाल के नवाब को प्लासी में परास्त किया । जबकि अन्य इसे 1761 का वर्ष मानते हैं , जब पानीपत के तीसरे युद्ध में अहमद शाह अब्दाली ने मराठाओं को परास्त किया । हालाँकि , ये सभी काल क्रमागत सीमांकन कुछ हद्द तक मनमाने या स्वछंद हो सकते हैं क्योंकि राजनितिक रूपांतरण , जो लगभग इस समय शुरू हुआ , को पूरा होने में लगभग 80 वर्षों का समय लगा ।

यह भारतीय इतिहास में ऐसा समय था जब विभिन घटनाक्रम घटित हो रहे थे । यह उस समय स्वाभाविक नहीं था , जैसा आज प्रतीत होता हे , की मुगल सम्राज्य अपने अंतिम दौर में था , मराठा राज्य स्थितियों से उभर नहीं पाया , और की ब्रिटिश सर्वोचता को टाला नहीं जा सका । फिर भी , परिस्थितियां , जिनके अंतर्गत ब्रिटिश को सफलता प्राप्त हुई थी , स्पष्ट नहीं थी , और उनके द्वारा सामना किये गए कुछ गतिरोध गंभीर प्रकृति के नहीं थे । यह वह विरोधाभास हे जो भारत में ब्रिटिश सम्राज्य की स्थापना की सफलता के करने को विचारणीय महत्व का विषय बना देता हैं ।

ब्रिटिश सफलता के कारण

बी .एल। ग्रोवर कहते हैं की लगभग एक शताब्दी तक , जब देश के विभिन हिस्सों में ब्रिटिश विजय प्रगति पर थी , उन्होंने कई कूटनीतिक और सैन्य प्रतिकूलताओं को झेला , जिसमे से अंत में वे विजय होकर निकले । इस सफलता के कारणों में निम्नलिखित हैं –

उत्कृष्ट हाथियार

अंग्रेज अस्त्रों, सैन्य युक्तियों एवं रणनीति में सर्वोकृष्ट थे । 18 वी शताब्दी में भारतीय शक्तियों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले अग्नि अस्त्र बेहद धीमे एवं भारी थे और जिन्हें अंग्रेजों द्वारा प्रयोग किये जाने वाले यूरोपीय बंदूकों अक़म तोपों ने गति अक़म दुरी दोनों ही लिहाजा से बहार कर दिया था । यूरोपीय पैदल सेना भारतीय अश्वारोही सेना की तुलना में तीन गुना अधिक तेज से प्रहार कर सकती थी ।

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