लोथल ,धोलावीरा ,बनावली
लोथल की खोज 1954 में SR RAO ने की थी । लोथल एक बंदरगाह हे जिसमे जहाजों के आने जाने और ठहरने के लिए पटल बनाए गए थे । यहाँ पर विशाल प्रशासनिक भवन का साक्ष्य भी प्राप्त हुआ हे जो सम्भवता विभिन कार्यशिल्पो के लिए इस्तेमाल किया जाता था यहाँ से एक ममी का मोडल भी प्राप्त हुआ हे ।
लोथल से प्राप्त एक बर्तन में चलाक लोमड़ी और सारस की कहानी का चित्रण किया गया । जिस कहानी की खोज काफी समय बाद चलकर गुप्त काल में विष्णु शर्मा की किताब पंचतंत्र से जानकारी प्राप्त होती हैं । यहाँ कहीं ना कहीं सिंधु घाटी सभ्यता की भारतीय संस्कृति की सतता को दर्शाता हैं ।
लोथल में दुर्ग क्षेत्र और नगर क्षेत्र दोनों एक ही दीवार से घिरे हुए हैं ।
धोलावीरा
धोलावीरा की खोज 1967-68 में JP JOSHI ने की थी । यहाँ से बड़ा वाटर डेम का साक्षय प्राप्त हुआ हैं । साथ ही खेलने के लिए स्टेडियम भी प्राप्त हुआ । धोलावीरा से दस अक्षरों का साइन बोर्ड भी प्राप्त किया गया हैं । धोलावीरा को तीन भाग में विभाजित किया गया हैं ऊपरी क्षेत्र , मध्य क्षेत्र , निचला क्षेत्र इसका ऊपरी और मध्य भाग दीवार से घिरा हैं और निचला खली हैं ।
यहाँ पर पथरो के बांध भी बनाये गए हैं यहाँ के लोग काफी ज्यादा मेहनती होते थे ।
बनावली
बनावली की खोज 1974 में RS विस्ट ने की थी । बनावली के मकानों में समान्यता को देखकर ऐसा लगता हैं की यहाँ पर समृधो का नगर हैं । बनावली हरयाणा में पड़ता हैं यहाँ से एक हल का साक्षय भी प्राप्त हुआ हैं ।
सिंधु घाटी में छः नगर थे और दो राजधानियां थी ।
दिलमुन – बहरीन
मगन – ओमान
मसूदा – IVC
अधिरोध उत्पादन
कृषि :- Food grains , Row Material
Food Grains :
गेंहू – मोहनजोदड़ो
चवल – रंगपुर
जो – बनावली
Row Material
कपास
बांस
इमरती लकड़ियां
पशु – पालन – कूबड़ वाला सांढ़
नदी – उपज भूमि , सिंचाई , मेहनती लोग
यहाँ पर लोग हाथी को भी पालते थे हाथी दन्त के लिए
मोहनजोदड़ो से घोड़े के रिप्स मिले ।
लोथल से मूर्ति मिली ।
सिंधु घाटी के लोग घोड़े को पालते नहीं थे । गाये को भी ज्यादा मुल्ये नहीं देते थे । सांढ़ को सबसे ज्यादा मूल्य दिया जाता था ।
अधिशेष उत्पादन –
- हाथी – दांत की वस्तुए
- बर्तन – मिटटी के
- मोर पालन
- धातु – मूर्तियां , औजार , आभूषण
अधिशेष शिल्प –
- कॉटन -कपड़े
व्यापर
- आधारभूत सरंचना – नगरीकरण
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