सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता में स्पष्ट रूप से अंतर्

सिन्धु सभ्यता और ऋग्वैदिक सभ्यता के मध्य अंतर स्पष्ट किया गया है।

वैदिक काल में सामाजिक वर्गों के वर्णानुक्रम का उदय हुआ जो प्रभावशाली रहेगा। वैदिक धर्म यज्ञ परक था तथा इस काल की वर्ण व्यवस्था कार्यानुसार थी।

वैदिक सामग्री संस्कृति के चरणों से पहचानी जाने वाली पुरातात्विक संस्कृतियों में गेरू की कब्र संस्कृति, काले और लाल वेयर संस्कृति और चित्रित ग्रे वेयर संस्कृति में गेरू रंग की बर्तनों की संस्कृति शामिल है।

वेदों के अतिरिक्त संस्कृत के अन्य कई ग्रंथो की रचना भी 4-5 ई.पू काल में हुई थी। वेदांगसूत्रौं की रचना मन्त्र ब्राह्मणग्रंथ और उपनिषद इन वैदिकग्रन्थौं को व्यवस्थित करने मे हुआ है। अनन्तर रामायण, महाभारत,और पुराणौंकी रचना हुआ जो इस काल के ज्ञानप्रदायी स्रोत मानागया हैं। अनन्तर चार्वाक , तान्त्रिकौं ,बौद्ध और जैन धर्म का उदय भी हुआ।

इतिहासकारों का मानना है कि आर्य मुख्यतः उत्तरी भारत के मैदानी इलाकों में रहते थे इस कारण आर्य सभ्यता का केन्द्र मुख्यतः उत्तरी भारत था। इस काल में उत्तरी भारत (आधुनिक पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा नेपाल समेत) कई महाजनपदों में बंटा था। आर्यों का आगमन मध्य एशिया से हुआ।

वैदिक काल को मुख्यतः दो भागों में बांटा जा सकता है- ऋग्वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल। ऋग्वैदिक काल आर्यों के आगमन के तुरंत बाद का काल था जिसमें कर्मकांड गौण थे पर उत्तरवैदिक काल में हिन्दू धर्म में कर्मकांडों की प्रमुखता बढ़ गई।

== ऋग्वैदिक काल ==(1500-1000 ई.पू.)

  • ऋग्वैदिक सभ्यता ग्रामीण संस्कृति लगती है जबकि सिन्धु सभ्यता के लोग सुनियोजित नागरिक जीवन से भलीभाँति परिचित थे.
  • आर्य धातुओं में सोने और चाँदी से परिचित थे और यजुर्वेद में लोहे के प्रयोग के भी निश्चित सन्दर्भ मिलते हैं. सिन्धु सभ्यता के लोग सोने, चाँदी का प्रयोग करते थे, किन्तु उन्होंने चांदी का उपयोग सोने से अधिक किया. ताम्बे और कांसे के विभिन्न आयुधों और उपकरणों का निर्माण करना वे जानते थे, किन्तु वे लोहे से परिचित नहीं थे.
  • ऋग्वैदिक आर्यों के जीवन में अश्व का बड़ा महत्त्व था. किन्तु इस विषय में निश्चित साक्ष्य नहीं है कि सिन्धु सभ्यता के लोग अश्व से परिचित थे.
  • वेदों में व्याघ्र का उल्लेख नहीं मिलता और हाथी का बहुत कम उल्लेख मिलता है. पर सिन्धु सभ्यता की मुद्राओं पर व्याघ्र और हाथी दोनों ही का पर्याप्त मात्रा में अंकन उपलब्ध है.
  • आर्य विभिन्न अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण करते थे. वे रक्षा उपायों में कवच बनाना जानते थे, जबकि सिन्धु सभ्यता के किसी भी स्थल की खुदाई से निश्चित रूप से रक्षा सम्बन्धी कोई भी वस्तु अभी तक नहीं मिली.
  • आर्य गाय को विशेष आदर देते थे. पर सिन्धु सभ्यता में मुद्राओं और अन्य कला-कृतियों से लगता है कि गाय की विशेष महत्ता नहीं थीं, गाय की अपेक्षा बैल का अधिक महत्त्व था.
  • आर्य संभवतः मूर्तिपूजक नहीं थे. दूसरी ओर सिन्धु सभ्यता के लोग मूर्तिपूजक थे.
  • सिन्धु सभ्यता के स्थलों से नारी मूर्तियाँ प्रभूत संख्या में उपलब्ध होने से प्रतीत होता है कि सिन्धु सभ्यता के देवताओं में मातृदेवी को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था. आर्यों में पुरुष देवता अधिक महत्त्वपूर्ण रहे हैं. देवियों का महत्त्व अपेक्षाकृत कम है.
  • मार्शल ने मोहेनजोदड़ों और हड़प्पा में अग्निकुंडों के अवशेषों के नहीं मिलने से यह निष्कर्ष निकाला कि यहाँ पर यज्ञादि का प्रचलन नहीं रहा होगा. जबकि आर्यों के धार्मिक जीवन में यज्ञों का अत्यंत महत्त्व रहा है.
  • सिन्धु सभ्यता की मुद्राओं और अन्य उपकरणों से स्पष्ट है कि लोग लिखना जानते थे किन्तु आर्यों के विषय में कुछ विद्वानों की धारणा है कि वे लिखना नहीं जानते थे किन्तु आर्यों के विषय में कुछ विद्वानों की धारणा है कि वे लिखना नहीं जानते थे और अध्ययन-अध्यापन मौखिक रूप से करते थे.
  • ऋग्वेद में असुरों के दुर्गों का उल्लेख है और हम यह जानते हैं कि सिन्धु सभ्यता के सभी प्रमुख नगर दुर्ग में थे.
  • अनार्यों को चपटी नाकवाला भी कहा गया है. हड़प्पा संस्कृति की कुछ मूर्तियों में भी चपटी नासिका दिखलाई गई हैं. आर्यों की नाक प्रखर होती थीं.

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