सिख

सिख :

सिख विचारधारा के परिवर्तक श्री गुरु नानक जी थे । उनकी मृत्यु के पश्चात दूसरे गुरु गुरु अंगद हुए जिहोने गुरु मुखी लिपि का अविष्कार किया । 5 वे गुरु, गुरु अर्जुन देव ने सूफियन भक्तों की अमृतवाणी एवं गुरु नानक के उपदेशो को इकठा कर अदि गुरु ग्रंथ साहिब का संकल्प किया । 7 वे गुरु के बाद से सिख आंदोलन धीरे – धीरे रानीतिक स्वरुप प्राप्त करने लगा । जिसके परिणाम स्वरुप मुगलों और गुरु की सेनाओं में कई बार प्रत्यक्ष संघर्ष देखा गया । 

उत्तर मुग़ल काल में फरुखसियर समय में जब बंदा बहदुर ने पुनः राजनीती शक्ति एकत्रित करने की कोशिश की तो बंदा बहादुर को मृत्यु दंड दे दिया । नादिर शाह और अहमद शाह के आक्रमणों से उपद्रवी व्यवस्था के कारण सिख पुनः एकत्रित होने लगे । इस समय लोग 12 मिसलों में बँटे थे । इनमे ही महत्वपूर्ण मिस्ल सुखत इकाई मिसल था । जिसके प्रमुख रणजीत सिंह थे । रणजीत सिंह ने अपनी अधीनस्थ  स्वीकार करने के लिए बाध्य किया । और एक प्रकार से पंजाब के शासन खो गए । उन्होंने सम्राज्य विस्तार की निति भी अपनाई । परन्तु जब वे सतलुज को पार कर सम्राज्य विस्तार कर प्रसार किया तब अंग्रेजो ने उन्हें पीछे हटने को मजबूर किया इन्होने अंग्रेजों के साथ 1809 में अमृतसर की संधि की इस संधि के अनुसार रणजीत सिंह सतलुज कभी ना पार करने का वादा किया था । 

रणजीत सिंह एक बेहतर कमांडर एवं दार्शनिक राजनयिक थे । इसलिए उन्होंने यूरोपीय पैटर्न पर एक विशाल आधुनिकतम सेना त्यार की इस सेना के बदौलत इन्होने कांगड़ा , कश्मीर  , एवं पाकिस्तान के बड़े क्षेत्रो पर विजय प्राप्त कर ली । इन्होने नादिरशाह शाह के उत्तराधिकारी से कोहिनूर हिरा भी प्राप्त कर लिया था । इन्होने अपने सम्राज्य में धार्मिक सहिष्ण्ता के आधार पर राज्य किया । इन्होने अपनी राजधानी को लाहौर में बनाया । 1839 में इनकी मृत्यु के बाद पंजाब सिखों के इस राज्य में आरजकता फ़ैल गई । आगे इनका सामना अंग्रेजों से हुआ । 

जाट राज्य :

ओरंगजेब के समय जाट आंदोलन एक कृषक आंदोलन था जो धीरे धीरे एक राजनितिक में तब्दील होने लगा । आगे जाटों को संगठित करने का  काम राजराम के एक क्षेत्रीय राज्य के रूप में भरतपुर , आगरा , मथुरा , डीग इन क्षेत्रो को विजय कर परिवर्तित करने का काम चूड़ामन ने किया । 

फ़र्रुख़सियर के समय में चूड़ामन के विरुद्ध जयसिंघ -2 ने सैन्य अभियान किया । जिसमे चूड़ामन ने आत्म हत्या कर ली । कालांतर में जब राजपूतो और मराठो ने अंग्रेजो की अधीनस्थ स्वीकार की तब जाटों ने भी अंग्रेजों की अधीनता  स्वीकार कर ली । 

अछूते राज्य : 

मैसूर में वडियार राज्य चला आ रहा था । इस समय नन्द राज और देवराज दो भाईओं ने वाडियार राजा की साड़ी शक्तियां अधीन कर ली थी । इन्हीं  नंजराज एवं देवराज की सेना में एक हैदरअली नाम का सैनिक धीरे – धीरे अपनी योग्यता के आधार पर उच्च पद प्राप्त कर लिया तथा आगे उसने नंजराज देवराज को सत्ता से हटता कर स्वयं स्वराज्य का करता – धरता बन गया । 

हैदरअली ने छोटे से विजय नगर को सम्राज्य विस्तार कर के एक बड़े सम्राज्य में तब्दील कर दिया । इसने भी यूरोपीय पैटर्न पर आधुनिक सेना तथा शस्त्रागारों की स्थापना की । 

सम्राज्यविस्तार की इस प्रक्रिया के कारण अन्य शक्तियों के कारण जैसे कर्नाटक में  उपस्थित अंग्रेज अधीन राज्य कर्नाटक , मराठे एवं  ढक्क्न से उलझना पड़ा । 

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